स्पोंडिलोसिस एक उम्र से संबंधित रीढ़ की हड्डी से जुड़ा विकार है, जिसमें कशेरुकाओं, डिस्क, और जोड़ो में घिसावट होने लगती है। यह गर्दन (सर्वाइकल स्पोंडिलोसिस) या पीठ (लम्बर/थोरेसिक स्पोंडिलोसिस) को प्रभावित कर सकती है और आज के समय में यह एक आम समस्या बनती जा रही है।
लेकिन यदि आप समय रहते अपनी जीवनशैली में छोटे-छोटे बदलाव करें, जैसे सही पोश्चर अपनाना, व्यायाम करना, और पोषण पर ध्यान देना, तो इससे बचाव संभव है।
गर्दन या पीठ का स्पोंडिलोसिस: क्या फर्क है दोनों में?
इन दोनों स्थितियों का सही समय पर पता लगाना और उनका प्रबंधन करना बेहद आवश्यक होता है, ताकि आपके जीवन की गुणवत्ता पर असर न पड़े।
गर्दन का स्पोंडिलोसिस (सर्वाइकल स्पोंडिलोसिस)
यह गर्दन के ऊपरी हिस्से की रीढ़ की हड्डी को प्रभावित करती है।
इसके प्रमुख लक्षणों में शामिल हैं:
- गर्दन में दर्द और अकड़न
- सिरदर्द, खासकर सिर के पिछले हिस्से में
- कंधों और बाहों में झनझनाहट या सुन्नपन
- गर्दन घुमाने में कठिनाई
पीठ का स्पोंडिलोसिस (लम्बर/थोरेसिक स्पोंडिलोसिस)
यह रीढ़ की हड्डी के निचले हिस्से को प्रभावित करती है।
इसके लक्षणों में शामिल हैं:
- ऊपरी पीठ या कमर में दर्द, जो लंबे समय तक बैठने या खड़े रहने से बढ़ जाता है
- टांगों में कमजोरी या झनझनाहट
- चलते समय संतुलन बनाने में कठिनाई
- लंबे समय तक खड़े रह पाने में असमर्थता
स्पोंडिलोसिस के प्रमुख कारण
स्पोंडिलोसिस होने के कई कारण हो सकते हैं, जिनमें कुछ सामान्य कारण इस प्रकार हैं:
- उम्र का बढ़ना: जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, रीढ़ में मौजूद डिस्क की तरलता कम होने लगती है और वह सख्त हो जाती है।
- गलत मुद्रा (पोश्चर): लंबे समय तक झुक कर बैठना (खास करके मोबाइल और लैपटॉप के साथ) रीढ़ पर दबाव डालता है।
- बैठे रहने की आदत: शारीरिक हालचाल की कमी और लगातार बैठना रीढ़ की सेहत को कमजोर करता है।
- दोहराए गए कार्य: एक ही तरह की गतिविधियों को बार-बार करना, जैसे झुक कर सामान उठाना, चोट पहुंचा सकता है।
- अनुवांशिक कारण: परिवार में यदि किसी को यह समस्या है, तो दूसरों को भी इसका खतरा अधिक होता है।
कैसे करें स्पोंडिलोसिस से बचाव?
हालांकि स्पोंडिलोसिस एक उम्र से जुड़ी स्थिति है, कुछ आदतों को अपनाकर इसे रोका या इसके उभरने में देरी ला जा सकती है।
1. सही मुद्रा अपनाएं
बैठते, खड़े होते, या चलते समय रीढ़ को सीधा और संतुलित रखें। कुर्सी पर बैठते समय पीठ को सपोर्ट देने के लिए कुशन या रोल का उपयोग करें।
2. नियमित व्यायाम करें
हल्का योग, स्ट्रेचिंग, और पीठ व गर्दन को मजबूत बनाने वाले व्यायाम करें। इससे रीढ़ का लचीलापन और उसकी मजबूती बनी रहती है।
3. पर्याप्त पानी पिएं और सही खानपान रखें
डिस्क की हाइड्रेशन बनाए रखने के लिए दिन भर में भरपूर पानी पिएं। ओमेगा-3 फैटी एसिड, हरी सब्ज़ियाँ, और एंटी-इंफ्लेमेटरी पदार्थो से भरा भोजन करे।
4. धूम्रपान न करे
धूम्रपान डिस्क और जोड़ो में रक्त प्रवाह को कम करता है, जिससे स्पोंडिलोसिस की संभावना बढ़ जाती है।
5. भारी वजन न उठाये
विशेषकर झुक कर वजन न उठाये। यदि ज़रूरी हो तो सही तकनीक से उठाएं, यानिकि पीठ के बजाय पैरों पर भार डाले।
6. लंबे समय तक एक ही स्थिति में न रहें
लंबे समय तक बैठने या स्क्रीन देखने के दौरान, हर 30 मिनट में एक बार खड़े होकर हल्का चलना या स्ट्रेच करना फायदेमंद होता है।
कब डॉक्टर से संपर्क करें?
यदि आपको लगातार गर्दन या पीठ में दर्द रहता है, सिरदर्द होता है, हाथ-पैरों में सुन्नपन या कमजोरी महसूस होती है, तो बिना देर किए डॉक्टर से सलाह लें। सही समय पर निदान और उपचार से भविष्य की जटिलताओं से बचा जा सकता है।
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